शहादत - एक कहानी
आज कदम रखा है अपने मुकम्मल की ओर , अपने आका के दिल में पनाह लेकर। इस खुशनुमा सफ़र पे रहेंगी दुआएँ तुम्हारे साथ उसकी उम्र भर हर कोशिश में हिम्मत से वार कर, उभर आना एक दिन सिकंदर बनकर, अपनी देहलीज़ में रहकर, जीत लेना ये दुनिया को तुम, अपने मुकद्दर को जी जान से आज़माकर, कभी हो रही हो खता और डगमगा जाओ अपने मंज़र से, तो बत्ती जलाकर प्रकाशित कर लो अपने इमान को और ऐसी उड़ान लेना कि फिर तोड़ सको सारी बुलंदियों को कभी ज़रूरत पड़़ी तो जान तक कर लेना उसके नाम तब जाके पहचाने जाओगे तुम उसके शहादत पहुँच जाना उस मुक़ाम तक जहा से खुदा भी पीठ थपथपाए तुम्हारीओर कहे, हे बंदे तू तो कल तक तो इस दुनिया का था पर आज से सिर्फ मेरा हैं.........