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शहादत - एक कहानी

आज कदम रखा है अपने मुकम्मल की ओर , अपने आका के दिल में पनाह लेकर। इस खुशनुमा सफ़र पे रहेंगी दुआएँ तुम्हारे साथ उसकी उम्र भर हर कोशिश में हिम्मत से वार कर, उभर आना एक दिन सिकंदर बनकर, अपनी देहलीज़ में रहकर, जीत लेना ये दुनिया को तुम, अपने मुकद्दर को जी जान से आज़माकर, कभी हो रही हो खता और डगमगा जाओ अपने मंज़र से, तो बत्ती जलाकर प्रकाशित कर लो अपने इमान को और ऐसी उड़ान लेना कि फिर तोड़ सको सारी बुलंदियों को कभी ज़रूरत पड़़ी तो जान तक कर लेना उसके नाम तब जाके पहचाने जाओगे तुम उसके शहादत पहुँच जाना उस मुक़ाम तक जहा से खुदा भी पीठ थपथपाए तुम्हारीओर कहे, हे बंदे तू तो कल तक तो इस दुनिया का था पर आज से सिर्फ मेरा हैं.........

जीयू तो कैसे जीयू

आज की रात रहेगी जीवन की सबसे यादगार आज तुम्हारे शादी की शुभकामनाएँ देने आए है यार मेरे भाई को जो है बडा दिलदार आज फिर आँखों के सामने वे लम्हे फिर याद आ जाती है लगता है आज इस मोड पे आके ऐसा लग रहा है आगे मार्ग तो है, पर उस पे चलने वाला मार्गदर्शी नही बचपन से जिसने इतने लाड प्यार से जीना आसान बनाया जिसने चलना सिखाया, दौडना सिखाया यहा तक कि गिरते-गिरते संभलना भी सिखाया आज एहसास हो रहा है कि जब सहारा छूटता तो कैसे लगता है मेरे अरमानों का पंख बने तुम मेरे गम को कंधा दिया तुमने मेरी खुशी को अपनी समझा पर अपने दुःख से परिचित भी न होने दिया जीयु तो कैसे जी़यु जब तुमने मुझे तुम्हारे बिना कभी जीना ही नहीं सिखाया मेरे खुशियों की सौगात बने तुम और दुख में आशा की किरण बने तुम सब कुछ सिखाया पर ये न सिखाया कि जीयू तो कैसे मै तेरे बिना............................