किंकर्तव्यविमूढ़

हे इंसान तु यह जान ले की तु अभी भी सिर्फ इंसान ही हैं
यह मत भूल की तू भगवान नहीं
अपनी कमज़ोरियों को समझ उनको स्वीकार कर
अपनी भूलों का विश्लेषण कर उनको दोहराओ मत
अपनी सीमा का अनुमान लगाकर अपने कर्मों पर नियंत्रण रख
अपने षडरिपुओं को त्याग कर अपने आप को खोज
अविष्कार करके एक नयी मिसाल बन
हे इंसान तू यह जान ले की तू अभी भी सिर्फ इंसान ही हैं , भगवान नहीं

हे इंसान तू यह जान ले की तू आज सिर्फ इंसान हों
पर कल तू भगवान बनाने की क्षमता रखता हैं
आज तू भले ही इस ज़िन्दगी में हैवान हैं
पर अगर तो उस ज़िन्दगी के उन ज़ंजीरों को तोड़
खुद को खुद से अलग करेगा तो तू ज़रूर
भगवान ही बनेगा यह मेरा आश्वासन हैं तुझे!!!!!

इन दो अनुच्छेद को पढ़ कोई भी किंकर्तव्यविमूढ़ में चला जा सकता हैं।  पर जीवन के सच को अनावरण करने के लिए खुदा ने पृथ्वी ने अनेक अवतरण ले हर एक राहगीर को पनाह देकर जीवन का कठोर सच से अनुभव कर जीवन का अर्थ समझाया हैं।  पर क्या इस पाठ को सिर्फ भूल जाना अनुचित हैं? 

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