एक अधूरी दास्तान उस बारिश के शाम
आज देखा एक युवती को
बारिश की शाम थी और एक हसीन लहर थी
थी खिड़की पर ताकती किसी की राह ,
कभी पलक झपकती, कभी मुस्कुराती
कभी झट से आँखें मूँदती,कभी प्रफुल्लित होती ,
कभी आँखों से टपकते हुए मोतियों को ऐसा सहलाती
मानो उस बारिश के बूंदों में समां देना चाहती,
आँखें दूर दूर तक किसीको ढूंढ रही
किसी मसीही को? या उसका सपनो के राजकुमार को?
अचानक उसकी नज़र पड़ी सामने के रंगीन उद्यान पर
जहा एक युवक बैठा था एकांत
आँखों में प्यार और लब्ज़ों पे किसी का नाम लेकर
पर चेहरे पर एक अजीब उदासीनता को छिपाता हुआ
अचानक एक पंछी उड़के उसके पास बैठा
और लड़के ने पलके झपकी और मानो कोई संदेसा दे रहा था
उस पंछी ने एक लम्बी उड़ान ली और
पहुँच गया उस युवती के पास और बैठ गया खिड़की पर
युवती के समक्ष कुछ चुहचुहाया मानो संदेसा दे रहा हो
उस युवती के आँखें भर गयी पर फिर भी वह शांत थी।
ग़म तो दोनों के दिल में हैं
पर दोनों एक दुसरे को समझा नहीं पा रहे थे
वक़्त जुज़रा …………
कभी वह युवती आके बैठती उस बाकडे पर
जहा उस दिन वह युवक बैठा था और कभी वह खुद
पर कभी उन दोनों साथ नहीं बैठा पाया
और धीरे धीरे मैं अपने आँखों को खोला और
आगे खिड़की खुली थी और बाहर बादल गरज रहे थे
बारिश के छींटे पूरे बदन को चीयर रहे थे
यह थी एक अधूरी दास्तान , कुछ मेरी कुछ तुम्हारी।
बारिश की शाम थी और एक हसीन लहर थी
थी खिड़की पर ताकती किसी की राह ,
कभी पलक झपकती, कभी मुस्कुराती
कभी झट से आँखें मूँदती,कभी प्रफुल्लित होती ,
कभी आँखों से टपकते हुए मोतियों को ऐसा सहलाती
मानो उस बारिश के बूंदों में समां देना चाहती,
आँखें दूर दूर तक किसीको ढूंढ रही
किसी मसीही को? या उसका सपनो के राजकुमार को?
अचानक उसकी नज़र पड़ी सामने के रंगीन उद्यान पर
जहा एक युवक बैठा था एकांत
आँखों में प्यार और लब्ज़ों पे किसी का नाम लेकर
पर चेहरे पर एक अजीब उदासीनता को छिपाता हुआ
अचानक एक पंछी उड़के उसके पास बैठा
और लड़के ने पलके झपकी और मानो कोई संदेसा दे रहा था
उस पंछी ने एक लम्बी उड़ान ली और
पहुँच गया उस युवती के पास और बैठ गया खिड़की पर
युवती के समक्ष कुछ चुहचुहाया मानो संदेसा दे रहा हो
उस युवती के आँखें भर गयी पर फिर भी वह शांत थी।
ग़म तो दोनों के दिल में हैं
पर दोनों एक दुसरे को समझा नहीं पा रहे थे
वक़्त जुज़रा …………
कभी वह युवती आके बैठती उस बाकडे पर
जहा उस दिन वह युवक बैठा था और कभी वह खुद
पर कभी उन दोनों साथ नहीं बैठा पाया
और धीरे धीरे मैं अपने आँखों को खोला और
आगे खिड़की खुली थी और बाहर बादल गरज रहे थे
बारिश के छींटे पूरे बदन को चीयर रहे थे
यह थी एक अधूरी दास्तान , कुछ मेरी कुछ तुम्हारी।
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