"मैं"आज आप ही की आग में जल गयी
मैं ज़िन्दगी जीता रहा
मर मर के जिया ,कर कर के जिया
दूसरों को समाया , अपनों को समाया
पर यह कभी समझ में नहीं आया
की कहा से कहा चल दिया
रास्ता सीधा था पर अँधेरा घनघोर
पर फिर भी चलते रहे यही सोच
की मंज़िल थी कही दूर
पर एक दिन आपसे मुलाकात हुई
ज़िन्दगी में उस दिन शाम ढल गयी
रास्ता आज भी सीधा ही था
पर आज रस्ते पर मशाल जल गयी
अनहोनी आज टल गयी
शुन्य से उभर कर शुन्य में, "मैं"आज आप ही की आग में जल गयी .....
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