तनहाई
आज जब अपने मन की बात तुम्हे बताई
तो क्यों तुम पहले मुस्कुरायी ......
और फिर देने लगी मुझे दुहाई
उस दिन छोड़ गयी तुम और
छा गयी मुझ में तनहाई
रोम रोम में लग गयी थी आग
और शोर मच गया - त्राहि त्राहि
तब थी भी न कुछ मेरी कमाई
की खरीद सकू शराब और छिपा सकू अपनी सिंचाई
तो तुरंत लेट गया अपने कम्बल में क्यूंकि
आज वाकही में आँखें मेरे भर आयी
अगले दिन बैठा रहा शांत एक कोने में
पर मन में हो रही थी तबाही
उस ज्वाला को शांत करने मसीहा तो भेजो ओ मेरे भाई
डूब गया था यादों में थी इतनी थी गहराई
हाँ साथ छोड़ दिया किसीने आज मेरा माई
शिकायत नहीं करता न करूँगा लड़ाई
पर आज ज़रूर खाऊंगा भर भर के मिठाई
आज रात को चैन की नींद आने के लिए लेनी पड़ेगा मुझे दवाई
कल से बदलने वाल हु मैं अपनी पहनाई
क्यूंकि अब बुरी लगने लगी होगी थी मेरी ही परछाई?
उस जिस दिन छोड़ गयी तुम और
छा गयी थी मुझ में तनहाई
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