आज बेटी का सुख मिला वह भी बंद किताब में
आज फिर से यूं ही याद आयी तेरी
और google पर ढूँढा एक बंद कमरे में
और एक हसीन चेहरा दिखा
आँखें मूँद कर, गालों में एक निस्वार्थ हसी
और जान गया यह नन्ही परी थी बल्कि
और नीचे एक बड़ी सी संघर्ष भरी मातृत्व की
गाथा जहा जीत की ख़ुशी आँखों में नमी छिपाती
अपने बेटी को सहलाती हुई
उस दिन इतनी ख़ुशी हुई और
तब जाना की
अँधेरे तहखाने में भी रोशनी उम्मीद लेके उभर आती हैं
मातृत्व की इस अटूट बंधन की शुरुआत भले ही
कठिन होगी पर इसका अंत में खुशियों की बौछार होती हैं
खुश तो बहुत हुई
आँखें भी नाम हुई
शरीर में अजीब सा उत्साह भरा
पर बयान करने का मौका नहीं
तो बस किताब में बयान किया अपना उल्लास
और बंद कर रख दिया अपने ज़हन में दबाए
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