No title
हैं कितनी मायूसी छिपी उस हस्सी के पीछे
पर आज ख़ुशी का शोक मना रहा हु मैं
उन दबे आंसुओं के पीछे
अपनी असफल प्रेमगाथा दफना रहा हु मैं
माना प्यार मेरा था सच्चा लेकिन क्या
अपरिपक्वता से इंसान मैं कच्चा बन गया था?
ज़हर उन लोगो ने घोल दिया था हमारे ज़िन्दगी में
पर जल सिर्फ मैं रहा था
आपा खोकर इंसान से हैवान बन गया हूँगा
यह तुम्हे भी पता था
पर प्यार के दो शब्द समझाकर
क्या तुम आसमान से ज़मीन पे न लाना था?
ज़िन्दगी के मुकम्मल पे आज आकर
यह सवाल करता हु कि
मेरा प्यार सच्चा था की तुम झूटी ?
यह आज एक बार बता ही दो......
आज यूही याद आयी तुम्हारी
तो ढूँढा तुम्हे इस दुनिया में
पर तुम्हारी नन्ही गुड़िया देख
मेरा आक्रोश गया बहती गंगा में
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